• Home
  • समाचार
  • देश
  • मधेश
  • मुख्य समाचार
  • Breaking News
  • वीरगंज संजाल बिशेष
  • राजनीति
  • विश्व
  • स्वास्थ्य
  • विचित्र संसार
  • दैनिक पत्रिका-e-Papper
आज:
    • समाचार
      • मुख्य समाचार
      • राजनीति
      • बिशेष
    • प्रदेश
      • प्रदेश नं.१
      • मधेश
      • बागमती
      • गण्डकी
      • लुम्बिनी
      • कर्णाली
      • सुदूरपश्चिम
    • विश्व
    • स्वास्थ्य
      • पोषण
      • सौन्दर्य
      • जीवनशैली
    • शिक्षा समाचार
      • अन्तर्वार्ता
      • कविता
    • Tech News
      • Mobile Phones
      • विचित्र संसार
    • खेलकुद
      • देश
      • विदेश
    • अर्थतन्त्र
      • बैंक
      • बिजनेस
      • बाणिज्य
    • अन्य
      • दैनिक राशिफल
      • Birthday/Anniversary
      • दैनिक पत्रिका
    होमपेज / Breaking News

    भारत की पहली मूक फीचर फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ 1913 में आई

  • वीरगंज संजाल
  • २१ मंसिर २०७९, बुधबार ११:४२
  • १०००५

    भारत | भारत की पहली मूक फीचर फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ 1913 में आई। इसके 18 साल बाद जब पहली बोलती फिल्म ‘आलमआरा’ सिनेमाघरों में पहुंची होगी, तो उस जमाने में कैसा कौतूहल रहा होगा, नई पीढ़ी शायद ही इसकी कल्पना कर पाए। जिन्होंने वह जमाना देखा है, बताते हैं कि इस फिल्म ने पूरे देश में भूचाल-सा पैदा कर दिया था। प्रचार के ‘चलती-फिरती तस्वीरों को जुबान मिली’, ‘नया अजूबा देखो’ और ‘गूंगा सिनेमा बोलने लगा’ जैसे जुमले लोगों के लिए कौतुक का सबब थे। हर कोई पहली फुर्सत में सिनेमाघर पहुंचकर इस नए तजुर्बे से रू-ब-रू होने को बेताब था। इस बेताबी के बीज 14 मार्च,1931 ने डाल दिए थे। इसी दिन मुम्बई के मैजिस्टिक सिनेमाघर में दोपहर तीन बजे ‘आलमआरा’ का विशेष शो हुआ। सुबह से सिनेमाघर के बाहर भीड़ टूटने लगी थी। भीड़ को काबू में रखने के लिए पुलिस को खासी मशक्कत करनी पड़ी। टिकट की दर चार आना ही थी, लेकिन कालाबाजारी में यह पांच रुपए तक में बिका (तब के पांच रुपए आज के पांच हजार रुपए से कम नहीं थे)। ‘आलमआरा’ बनाने वाले आर्देशिर ईरानी ने यह विशेष शो सिर्फ जनता की प्रतिक्रिया जानने के लिए रखा था। उन दिनों अंग्रेजों की हुकूमत थी। इस तरह के शो के लिए इजाजत जरूरी थी। ‘आलमआरा’ देखने की मांग के साथ जनता सड़कों पर उतर पड़ी, तो विशेष शो के दो हफ्ते बाद हुकूमत ने इसके नियमित सार्वजनिक प्रदर्शन की इजाजत दे दी। यह सिलसिला 28 मार्च,1931 की शाम छह बजे के नियमित शो से शुरू हुआ। लगातार सात दिन तक सभी शो हाउसफुल रहे।

    इतिहास अक्सर जुनून रखने वाले रचते हैं। जहां जुनून होता है, वहां सृजन के रास्ते भी खुल जाते हैं। आर्देशिर ईरानी पर लड़कपन से जुनून सवार था कि उन्हें सिनेमा के क्षेत्र में कुछ नया कर गुजरना है। यह वह दौर था, जब भारत में आजादी की लड़ाई को स्वदेशी आंदोलन ताकत दे रहा था। लोग सपने देखा करते थे कि स्वदेशी कपड़े की तरह क्या हम स्वदेशी फिल्में भी देख पाएंगे। आर्देशिर ईरानी के पूर्वज ईरान से आकर पुणे में बसे थे। आर्देशिर ने गुजर-बसर के लिए मुम्बई में संगीत उपकरणों की दुकान जरूर खोली, लेकिन हमेशा इस उधेड़बुन में रहते कि कहीं से थोड़े-बहुत धन का बंदोबस्त हो जाए, ताकि वह फिल्म बना सकें। अचानक 1903 में उनकी किस्मत पलटी, जब 14 हजार रुपए की लॉटरी खुल गई (उन दिनों यह खासी भारी रकम थी)। बस, फिर क्या था। आर्देशिर ईरानी ‘बाजे बेचने वाले’ से ‘फिल्म वाले’ हो गए। करीब 28 साल तक फिल्म वितरण और मूक फिल्मों की गलियों में भटकते हुए उन्होंने ‘आलमआरा’ बनाकर इतिहास रच दिया।

    ‘आलमआरा’ फारसी और अरबी जुबान के दो लफ्जों की जुगलबंदी है। इसका मतलब है- दुनिया को संवारने वाला। वाकई यह फिल्म बनाकर आर्देशिर ईरानी ने सिनेमा की दुनिया संवार दी। फिल्म में नायिका का नाम आलमआरा है। कहानी पुराने जमाने के शाह आदिल सुलतान के शाही खानदान की है। यह किरदार एलिजर ने अदा किया, जबकि जिल्लोबाई और सुशीला उनकी दो बेगमों के किरदार में थीं। तरह-तरह की साजिशों के बीच शाही खानदान के शहजादे (मास्टर विट्ठल) और सिपहसालार के बेटी आलमआरा (जुबैदा) की प्रेम कहानी करवटें लेती रहती है। फिल्म में पृथ्वीराज कपूर और एल.वी. प्रसाद ने भी अहम किरदार अदा किए। बाद में इन दोनों हस्तियों ने सिनेमा में अलग मुकाम बनाया। दोनों को फाल्के अवॉर्ड से नवाजा गया।
    भारतीय सिनेमा में पाश्र्व गायन की शुरुआत भी ‘आलमआरा’ से हुई। फिल्म में फकीर का किरदार अदा करने वाले वजीर मोहम्मद खान को पहला प्लेबैक गायक माना जाता है। उन्होंने ‘दे दे खुदा के नाम पे प्यारे’ गाया था, जो उन्हीं पर फिल्माया गया। बाकी ज्यादातर गाने नायिका जुबैदा ने गाए। संगीत फिरोज शाह मिस्त्री और बी. ईरानी ने तैयार किया था। तब फिल्म संगीत में सीमित वाद्य थे- हारमोनियम, ढोलक, तबला, बांसुरी और वायलिन। ‘दे दे खुदा के नाम पे’ के अलावा ‘आलमआरा’ के बाकी गाने अब सहज उपलब्ध नहीं हैं।

    अफसोस की बात है कि इस ऐतिहासिक फिल्म का अब कोई प्रिंट उपलब्ध नहीं है। कई साल पहले खबर उड़ी थी कि राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार के पुणे मुख्यालय में आग से ‘आलमआरा’ का प्रिंट खाक हो गया। अभिलेखागार ने इसका खंडन करते हुए कहा कि उसके पास इस फिल्म का प्रिंट था ही नहीं। क्यों नहीं था, यह भी अहम सवाल है। अभिलेखागार 1964 में शुरू हो गया था। उसे ऐतिहासिक फिल्मों के प्रिंट जुटाने की कोशिश करनी चाहिए थी। अब जबकि इस फिल्म से जुड़ी तमाम हस्तियां दुनिया से कूच कर चुकी हैं, प्रिंट मिलना सपना बनकर रह गया है। आर्देशिर ईरानी की ‘आलमआरा’ के बाद इस नाम से तीन और फिल्में बनाई गईं। निर्देशक नानूभाई वकील ने 1956 में चित्रा, दलजीत, मीनू मुमताज और डब्ल्यू.एम. खान को लेकर ‘आलमआरा’ बनाई। इसके बाद उन्होंने 1960 में ‘आलमआरा की बेटी’ (नयना, दलजीत, शशिकला) और 1973 में फिर ‘आलमआरा’ (अजीत, नाजिमा, बिन्दु) बनाई। इन तीनों फिल्मों की कहानी मूल ‘आलमआरा’ से अलग थी।

    प्रतिक्रिया दिनुहोस


    सम्बन्धित समाचार
  • मतदाताको गुनासो र सुझाव संकलन डिजिटलबाट
  • गोर्खा सैनिक र सन्ततिलाई वंशजको नागरिकता कायम राख्न माग
  • भन्सार विधेयकमाथि विचार गरियोस् भन्ने प्रस्ताव राष्ट्रियसभामा स्वीकृत
  • ‘वीरगञ्जमा खानेपानी समस्या समाधान चाँडै’
  • समाचार खोजनको लागि याहा

    • पछिल्ला
    • मुख्य
    • लोकप्रिय

    मतदाताको गुनासो र सुझाव संकलन डिजिटलबाट

    गोर्खा सैनिक र सन्ततिलाई वंशजको नागरिकता कायम राख्न माग

    भन्सार विधेयकमाथि विचार गरियोस् भन्ने प्रस्ताव राष्ट्रियसभामा स्वीकृत

    ‘वीरगञ्जमा खानेपानी समस्या समाधान चाँडै’

    रवि लामिछानेको पक्राउ प्रतिशोधपूर्ण, गृहमन्त्रीको राजीनामा हुनै पर्छ : बुर्लाकोटी

    मधेश प्रदेशमा बुधवार सार्वजनिक बिदा

    मेनपावर कम्पनी नवीकरण गर्दा अब गूगल प्लस कोडसहितको गूगल म्याप पनि आवश्यक पर्ने

    सडकमा गाडी रोकेर सामान बेच्ने ३ गाडीलाई ४५ हजार जरिबाना

    समुदाय विपद् स्वयंसेवक परिचालन आधारभूत तालिमको शुभारम्भ

    मधेस सरकारको बजेट खर्च २० प्रतिशतमात्रै

    मतदाताको गुनासो र सुझाव संकलन डिजिटलबाट

    गोर्खा सैनिक र सन्ततिलाई वंशजको नागरिकता कायम राख्न माग

    भन्सार विधेयकमाथि विचार गरियोस् भन्ने प्रस्ताव राष्ट्रियसभामा स्वीकृत

    ‘वीरगञ्जमा खानेपानी समस्या समाधान चाँडै’

    रवि लामिछानेको पक्राउ प्रतिशोधपूर्ण, गृहमन्त्रीको राजीनामा हुनै पर्छ : बुर्लाकोटी

    बारामा प्रहरी र स्थानीय बिच झडप ,हवाई फायर ,एक गम्भीर

    वीरगंज अन्तर्गत पर्ने अलौंमा सशस्त्र प्रहरी द्वारा एक राउण्ड हवाई फायर

    सुर्खेतमा मंगलबार थपिए १२ संक्रमित

    स्वास्थ्य मन्‍त्रालयको नियमित पत्रकार सम्मेलन (लाइभ)

    रौतहटमा एकैदिन थपिए ५६ जना कोरोना संक्रमित

    वीरगञ्जको आदर्शनगरका थप एक जनाको कोरोना संकमणबाट मृत्यु

    काेराेनाबाट वीरगञ्जमा थप एक महिलाको मृत्यु

    कोरोना रोकथाम र नियन्त्रणमा कहाँ चुक्यो सरकार ?

    समाचार
    News

    मतदाताको गुनासो र सुझाव संकलन डिजिटलबाट

    News

    गोर्खा सैनिक र सन्ततिलाई वंशजको नागरिकता कायम राख्न माग

    News

    भन्सार विधेयकमाथि विचार गरियोस् भन्ने प्रस्ताव राष्ट्रियसभामा स्वीकृत

    News

    ‘वीरगञ्जमा खानेपानी समस्या समाधान चाँडै’

    News

    रवि लामिछानेको पक्राउ प्रतिशोधपूर्ण, गृहमन्त्रीको राजीनामा हुनै पर्छ : बुर्लाकोटी

    < a href="https://birgunjsanjal.com/">

    पत्राचार ठेगाना

    विरगंज स्ंजाल
    ठेगाना - अलौं,वीरगंज-१७ , नेपाल
    सम्पादक/प्रकाशक -कृष्ण कुमार श्रीवास्तव
    प्रबंधक निदेशक -बलिराम श्रीवास्तव
    सम्पर्क ईमेल –[email protected]
    सम्पर्क न +977-9869096688
    जि.प्र.का. दर्ता नम्बर : 300/078/079
    जि.हु.का.प.दर्ता न. : १८६/०७८/७९
    पेन न : न. : 109761983

    फेसबुक

    2025: वीरगंज संजाल तपाईंको आफ्नो न्युज | बिज्ञापन | सम्पर्क | हाम्रो बारेमा Designed by: GOJI Solution
    ↑